अंग-अंग में लगन प्रेम की लगाई ऐसी
रति हो गई है तू अनंग हो गया हूँ मैं !
देकर उमंग नवप्राण है प्रदान किया
शांत झील का जैसे तरंग हो गया हूँ मैं
हृदय हिरण पाके भरता कुलांचे अब
मिल गई जबसे मलंग हो गया हूँ मैं
रंग लेके आसमा में उड़ता हूँ खुशियों के
डोर हो गई है तू पतंग हो गया हूँ मैं
संग,जंग,रंग,ढंग,पतंग,मलंग,तुरंग,तंग,ल
संग संग रहती हो जीवन में रंग बन
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