तू स्वाति और मैं चातक हूँ जग से कह न पाऊँगा ! विरह का दुख तुम्हारा मैं कभी भी सह न पाऊंगा ! कभी गुस्से में भी कह दूं अकेला छोड़ दो मुझको , न तन्हा छोड़ना मुझको मैं तुमबिन रह न पाऊँगा !!
कवि सुनिल नील
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