अपने ही भाइयों का ,रक्त जो बहा *रहे* थे
कैसे ऐसे मूर्खों को,मैं सुजान कह दूँ ?
स्वयं के ही देश को जो,फूँकने को आतुर हो
कैसे ऐसे रावणों को ,हनुमान कह दूँ ?
हल वाले हाथों से जो, लहराए तलवार
कैसे उन्हें धरती का ,भगवान कह दूँ ?
निज स्वार्थ हेतु *करे*, तिरंगे का अपमान
कैसे ऐसे गद्दारों को, मैं किसान कह दूँ??
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