मोर पंख
गुरुवार, 14 जनवरी 2021
इंसान(उल्लाला-2)
उल्लाला-१०
*इंसान*
("सुधार के बाद")
●●●●
सबके अंतस भीतरी, देखय जे भगवान रे |
ओला तैं हर जान ले, सिरतो मा इन्सान रे ||
●●●●
सुनिल शर्मा"नील"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें