यहाँ कब किसका बदल जाए मन पता नही! कौन यहाँ मलिन और कौन पावन पता नही ! सियासत के इस खेल में स्वार्थ ही सबकुछ है, इसमें दोस्त कब बन जाए दुश्मन पता नही!!
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