कोचराय हे देहे ,पेचके हे गाल
निहरे हे कनिहा, पाका हे बाल
मइलहा हे पटकू,चिरहा हे धोती
बबा रिसायहे जाने काखर सेती
बड़ देर होगे आज बडबड़ात हे
कोंटा म बइठके आँसू बोहात हे
लागथे बेटा ह फेर खिसियाय हे
धुन बहु कुछु नाव ले बगियाय हे
पाछु पंदरही बहू कतका सुनाइसे
तसमा का टुटगे नगत झरराइसे
भूखे पियासे तालाबेली दे रहिसे
जुड़ म बपरा परछी म सोय रहिसे
बहू-बेटा कोनो दया नइ खाइस
बपरा सोगे भीतर नइ बलाइस
नाती ल खेला खुस हो लेत रहिसे
अपन छाती ल जुड़ो लेत रहिसे
नाती ल खेलाय बर बरज दिस
जीए के ओखी म पथरा चपक दिस
रही-रही बबा ल बीते दिन सुरता आथे
डोकरी के सुरता म मन कलप जाथे
अपन भाग ऊपर बिचारा बड़ पछताथे
जब-जब रोथे तब डोकरी ल गोहराथे
काबर लईका आज सियान ल रोवाथे
जेन रुख छाव देथे उही ल काट गिराथे
जेन घर सियान तउन सरग कहाथे
एला दुःख देवइया कहाँ सुख पाथे|
रचना-
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
दिनाँक-09/12/2015
CR
बुधवार, 9 दिसंबर 2015
जेन घर सियान तउन सरग कहाथे
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें