सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

कहे नील कविराय -2



सरस्वती वंदना (कुंडलिया 2)

सादर वंदन आपकी, करूँ झुकाकर माथ |
हे माँ वाणी नील का, नही छोड़ना हाथ ||
नही छोड़ना हाथ, रचूँ जो भी मैं कविता |
सबको लागे नीक, लगे पावन ज्यों सरिता ||
भाव शिल्प हो श्रेष्ठ, समाहित सबका आदर |
कविता ऐसी मातु , रचूँ मैं अनुनय सादर ||

सुनिल शर्मा नील
गुवारा, थान खाम्हरिया (छत्तीसगढ़)




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें