सरस्वती वंदना (कुंडलिया 2)
सादर वंदन आपकी, करूँ झुकाकर माथ |
हे माँ वाणी नील का, नही छोड़ना हाथ ||
नही छोड़ना हाथ, रचूँ जो भी मैं कविता |
सबको लागे नीक, लगे पावन ज्यों सरिता ||
भाव शिल्प हो श्रेष्ठ, समाहित सबका आदर |
कविता ऐसी मातु , रचूँ मैं अनुनय सादर ||
सुनिल शर्मा नील
गुवारा, थान खाम्हरिया (छत्तीसगढ़)
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