आंखों का पानी मरा, गई शरम औ लाज |
गलती कर कहते युवा, बिगड़ा आज समाज ||
युवा भ्रमित दिखता मुझे, देखूं जिस भी ओर |
कब तम का अवसान हो , कब आएगी भोर ||
छोटे होते वस्त्र औ, खोए है संस्कार |
नंगापन फैशन बना, भ्रमित हुए नर नार ||
गंदे गीतों पर युवा, बना रहे है रील |
अनुनय है मां बाप से , मत दो इतनी ढील ||
प्रेम शब्द का अर्थ ये, जाने ना मतिमंद |
तरुणाई को खो रहे, होकर अति स्वच्छंद ||
मोबाइल के रोग से, पीड़ित है संसार |
नैतिकता के नाव से , होगा बेड़ापार ||
स्वरचित/मौलिक
सुनिल शर्मा नील
गुवारा,थान ख़म्हरिया(छत्तीसगढ़)
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