वो पगडंडी, वो अमराई,वो गाँव नही भूला ! खेला जिस नीम तले कभी वह छाँव नही भूला ! लोग भूल जाते है ऊंचाई पर पहुंचकर जमीं को अक्सर, मिली लाख बुलंदीयाँ मुझे पर माँ कभी भी तेरे पाँव नही भूला !
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