शुक्रवार, 29 मई 2015
नान्हे कहिनी:धन होगे माटी(अनुवाद)
एक दिन कुम्हार ह माटी ल सानके चिलम बनावत रहिसे|चिलम बनावत -बनावत जाने कुम्हार ल काय सुझिस कि ओहा ओ चिलम ल मिझार दिस अउ ओ माटी ल सानके चाक ऊपर चढ़ा के मरकी बनाय लागिस|चाक ऊपर माटी ल चघाएच रिहिसे कि माटी बोले लागिस-"मेहा माटी बनके धन-धन होगेव कुम्हार बाबू तोर जय होवय"|कुम्हार माटी ल पूछिस कि तय कइसे धन-धन होगेव कहिथस वो माटी?
ता माटी कहिस कि मोल चिलम कोनो बनाये रहितेस कुम्हार बाबू त खुद जरतेव् अउ दूसर के छाती ल घलो जरोतेव अब तय मोला मरकी बनाबे त खुद जुड़ाहु अउ मोर मरकी के जउन पानी पिही तेखरो छाती ल जुडोहु|कुम्हार के आँखी म माटी के गोठ ल सुन आँसू भर गे अउ ओ दिन ले ओहा चिलम नइ बनाय के प्रन ले डरिस|
सुनिल शर्मा "नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
9755554470
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