जताता *वो* नहीं एहसान,अक्सर मौन होता है !
सदा नेपथ्य में रहकर, कुटुंब का बोझ ढोता है !
हुए लाखों सृजन माँ पर,इन्हें सबने भुलाया है ,
पिता सा त्याग का सिंधु *न* कोई जग में होता है !!
जताता है नही अहसान,अक्सर मौन होता है !
सदा नेपथ्य में रहके,कुटुंब का बोझ ढोता है !
हुए लाखों सृजन माँ पर,इन्हें सबने भूलाया है ,
पिता सा त्याग का सिंधु नही कोई जग में होता है !!